योग बल से वर्षा कर गायों की प्याश बुझाना
बारह वर्ष की अवस्था होते -होते यह प्रकट होने लगा की मस्ता जी की रुचि घर अथवा उसकी सम्पत्ति मैं न होकर वन कानन तथा गुफा कंदराओं मैं ही है | वह पहले ही की भांति अन्य चरवाहों के साथ गाय चराने जाते थे पर तो भी उनके मन की थाह पाना सरल नही था |
रक बार गर्मी की ऋतू थी , मध्यान्ह के समय सूर्या तप रहा था | प्रथ्वी गर्मी से जल रही थी | ऐसी अवस्था मैं अन्य चरवाहों ने मस्ता जी से कहा की - मध्यान का समय है आस पास कही भी पशुओं को पिलाने के लिए भी कहीं भी पानी नहीं है अतः पशुओं को गाँव मैं ले जाना चाहिए |
श्री मस्ता जी ने कहा कि- मैं तो गाय गाँव मैं लेकर नहीं जाऊँगा और उन्हें प्याश लगने पर यही पानी पिलऊँगा | साथी चरवाहों ने उनसे कहा कि इस वनखंड कि चप्पा चप्पा भूमि उनोहने देखि हुई है यहाँ कोई भी तालाब जोहड़ अथवा अन्य जलाशय नहीं है जहाँ उन्हें पानी मिल सके अतः उन्हें यही रहने का हठ नहीं करना चाहिए | यहाँ रहने पर उनके गाय बछड़े आदि प्याश से वियाकुल हो जायेंगे और वह बड़े संकट मैं फँस जायेंगे अतः अच्छा यही है कि वह हठ का परित्याग कर दें और उनके साथ वापिश गाँव लौट चलें |
प्रतीत होता है कि श्री मस्ता जी के मन मैं अपने साथियों को योगिक चमत्कार दिखलाने कि इच्छा थी अथ उनोहने साथी पालिओं को कहा कि वे जंगल मैं ही रहें | लेकिन अन्य चरवाहे अपनी गायों को लेकर गाँव कि और चल पड़े | वे गाँव तक पहोंच भी नहीं पाए थे कि आकाश मैं घन घोर घटाएं उठीं और मुसलाधार वर्षा होने लगी | उनके चरों तरफ जल ही जल फैल गया और मस्ता जी कि गायों को वन मैं ही पानी पिने को मिलगया | यह चमत्कार देखकर सभी चरवाहे चकित रह गए और उनोहने गाँव वालों को बताया कि जब वे जंगेल से अपनी गायों को लेकर लौट रहे थे तब आकाश शून्य था उसमे न कोई बदल था न कोई घटा थी | मस्ता जी ने योग बल से वर्षा करवा कर हमारा भ्रम दूर किया है निश्चय ही यह करामाती सिद्ध है जो यहाँ हमें अपने बाल्य काल मैं योग लीला दिखला रहे हैं |
गाँव वालों ने यह सुना तो वे मंत्र मुग्ध हो सुनते ही रह गए
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